जीएसटी की महत्वपूर्ण शब्दावली (Important Terms of GST in Hindi)

यहाँ हम जीएसटी की महत्वपूर्ण शब्दावली (Important Terms of GST) के बारे में जानेंगे। 

कई महत्वपूर्ण शब्दों जैसे इनपुट टेक्स क्रेडिट, रिवर्सल ऑफ इनपुट टेक्स क्रेडिट, जीएसटी में निल रेटेड सप्लाइज, जीएसटी में एक्जे़म्प्टेड सप्लाइज, जीएसटी में जीरो रेटेड सप्लाइज़, जीएसटी में नाॅन-जीएसटी सप्लाइज, स्पेशल इकोनोमिक ज़ोन या विशेष आर्थिक क्षेत्र, जीएसटी में रेगुलर स्कीम, जीएसटी में कंपोजिशन स्कीम, गुड्स एंड सर्विसेज़ टेक्स, जीएसटी, सीजीएसटी, एसजीएसटी, आईजीएसटी, जीएसटीआईएन, जीएसटीएन का यहाँ बेसिक परिचय दिया गया है।

जीएसटी की महत्वपूर्ण शब्दावली (Important Terms of GST) के विडियो ट्यूटोरियल (Video Tutorial) के लिये यहाॅं क्लिक करें

जी.एस.टी. क्या है? (What is G.S.T.)

चूँकि बात GST की महत्वपूर्ण शब्दावली की हो रही है तो आपमें से ज्यादातर लोग इस term से भलीभांति अवश्य परिचित होंगे, पर अन्य terms को बताने से पहले GST को बताना बहुत ज्यादा आवश्यक हो जाता है।

GST का फुल फाॅर्म है Goods and Services Tax

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह टैक्स वस्तुओं और सेवाओं की सप्लाई पर लगाया जाता है।  जब भी GST के दायरे में आने वाली वस्तुओं या सेवाओं की सप्लाई की जाती है उस पर सरकार द्वारा निर्धारित दर से टेक्स लगाया जाता है।

भारत में जी.एस.टी. की दर (Rate of GST in India)

हालाँकि अलग-अलग वस्तुओं पर लगाये जाने वाले GST की दर अलग-अलग हो सकती है फिर भी किसी एक वस्तु पर लगाये जाने वाले GST की दर पूरे देश में एक सी ही होती है।   

सामान्यतः GST की दरें 5%, 12%, 18% और 28% हैं।   इसके अलावा कुछ विशेष वस्तुओं पर 3% और 0.25% जैसी अलग दरें भी हैं।

GST में टैक्स को मुख्य रूप से चार भागों में बाँटा गया है,

  1. IGST अर्थात् Integrated GST (Integrated Goods and Services Tax) जो एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच होने वाली Goods या Services की सप्लाइज़ पर केन्द्र सरकार द्वारा वसूला जाता है।
  2. CGST अर्थात् Central GST (Central Goods and Services Tax) जो एक ही राज्य में होने वाली सप्लाइज़ पर केन्द्र सरकार द्वारा वसूला जाता है।  यह उस वस्तु हेतु निर्धारित GST की दर का आधा होता है।  जैसे किसी वस्तु पर GST की दर 28% है तो CGST 14% ही लगेगा।
  3. SGST अर्थात् State GST (State Goods and Services Tax) जो एक ही राज्य में होने वाली सप्लाइज़ पर राज्य सरकार द्वारा वसूला जाता है।  CGST के समान ही SGST भी उस वस्तु हेतु निर्धारित GST की दर का आधा होता है।
  4. UTGST अर्थात् Union Territory Goods and Services Tax है।  UTGST किसी केंद्र शासित प्रदेश से उसी केंद्र शासित प्रदेश में होने वाली वस्तुओं या सर्विसेज़ की सप्लाई पर वसूला जाता है। CGST और SGST के समान ही UTGST भी उस वस्तु हेतु निर्धारित जी.एस.टी. की दर का आधा होता है।

यहाँ यह भी ध्यान रखना चाहिये कि UTGST या Union Territory Goods and Services Tax सिर्फ उन्हीं केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होता है जिनका अपना खुद का विधान मंडल या विधान सभा नहीं होते जैसे चंडीगढ़, लक्षद्वीप, दमन और दीव, दादरा और नगर हवेली, अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में UTGST लागू है।  वहीं Union Territory होने के बावजूद दिल्ली और पुदुचेरी में SGST लागू होता है क्योंकि वहाँ उनकी अपनी विधान सभा है।

अगला महत्वपूर्ण टर्म है GSTIN

What is GSTIN?

दोस्तों GSTIN का फुलफाॅर्म है GST Identification Number या Goods & Services Tax Identification Number

GST के अन्तर्गत रजिस्टर्ड व्यापार या कंपनी को यह नंबर अलाॅट किया जाता है।  अगर कोई व्यक्ति अलग-अलग राज्यों में अपने व्यापार को रजिस्टर्ड करवाता है तो एक ही PAN कार्ड पर उसे अलग-अलग GST नम्बर जारी होंगे।

अब मैं आपको बता दूॅं कि GSTIN का स्ट्रक्चर कैसा होता है या कौन-कौन से तत्वों से मिलकर यह नम्बर बनता है।

Structure of GST

Structure of GST

15 अंकों व अक्षरों से मिलकर बने इस नंबर में सबसे पहले दो अंक राज्य का कोड होते हैं, जैसे कि मध्यप्रदेश का कोड 23 है तो मध्यप्रदेश में रजिस्टर्ड व्यापार के GST नंबर में सबसे पहले 23 होगा और अगर व्यापार का रजिस्ट्रेशन गुजरात में हुआ है तो यह कोड 24 होगा।

Structure of GST State Code

इसके बाद के 10 अंक उस व्यक्ति या व्यापार के PAN कार्ड के 10 अंक व अक्षर होते हैं।

Structure of GST PAN

13वाँ अंक बताता है कि इसी सेम पेन कार्ड से इस राज्य में कितनी entities रजिस्टर्ड हैं।

Structure of GST Entities

14वाँ अंक बाय डिफाल्ट Z होता है और 15वाँ या अंतिम अक्षर Check Code होता है जो अल्फाबेट या अंक हो सकता है।

यहाँ एक बात बता दूॅं कि आपको GSTIN और GSTN में कन्फ्यूज़ नहीं होना है।

GSTIN और GSTN में अंतर (Difference between GSTIN & GSTN)

जहाँ GSTIN – GST Identification Number है वहीं GSTN – Goods and Services Tax Network है जो कि GST पोर्टल के I.T. सिस्टम को मैनेज करने वाली एक ओर्गेनाइज़ेशन है।

इसके बाद आते हैं रजिस्ट्रेशन टाईप से संबंधित शब्दावली पर

जीएसटी में रजिस्ट्रेशन (Registration under GST) :

जिन सप्लायर्स का टर्नओवर सामान्य एवं Special Category वाले राज्यों में GST हेतु अलग-अलग निर्धारित राशि से ज्यादा होता है, उन्हें अपना रजिस्ट्रेशन GST के अन्तर्गत कराना ही होता है।  वे सप्लायर्स चाहें तो अपना रजिस्ट्रेशन रेगुलर स्कीम में करा सकते हैं या चाहें तो अपना रजिस्ट्रेशन कंपोज़िशन स्कीम में करा सकते हैं।

GST Registration
GST Registration Limit

हालाँकि जिन सप्लायर्स का टर्नओवर निर्धारित राशि से कम है वे भी चाहें तो अपना रजिस्ट्रेशन GST में करवा सकते हैं।

जीएसटी हेतु विशेष श्रेणी (Special Category) वाले राज्य निम्न हैं –

  1. Arunachal Pradesh
  2. Assam
  3. Jammu & Kashmir
  4. Manipur
  5. Meghalaya
  6. Mizoram
  7. Nagaland
  8. Sikkim
  9. Tripura
  10. Himachal Pradesh
  11. Uttarakhand

यहाँ एक बात ध्यान में रखने वाली है कि Interstate Suppliers of Goods, E-commerce Operators, Casual Taxable Person, Recipient of supply (जो कि Reverse Charge Basis पर टेक्स भुगतान करने के लिये उत्तरदायी (liable)) हैं, Online Service Provider के लिये GST में रजिस्ट्रेशन कराना कंपल्सरी है।

Important Terms of GST में अब बात करते हैं रेगुलर और कंपोज़िशन स्कीम की

Regular Scheme :

जिन व्यापार या व्यवसाय का टर्नओवर 1.5 करोड़ रूपये से ज्यादा होता है उन्हें अपना रजिस्ट्रेशन रेगुलर स्कीम में ही कराना होता है।  हालाँकि जिन व्यापार या व्यवसाय का टर्नओवर 1.5 करोड़ रूपये से कम होता है वे भी चाहें तो अपना रजिस्ट्रेशन रेगुलर स्कीम में करा सकते हैं।

रेगुलर स्कीम में सामान्यतः टैक्स की दरें 5%, 12%, 18% और 28% होती हैं।   इसके अलावा कुछ विशेष वस्तुओं पर 3% और 0.25% जैसी अलग Tax Rates भी हैं।

जहाँ रेगुलर स्कीम में रजिस्ट्रेशन के कई फायदे हैं जैसे –
रेगुलर स्कीम में रजिस्टर्ड व्यापारी अन्य राज्यों में भी अपने माल व सेवाओं की सप्लाई कर सकता है।
रेगुलर स्कीम में रजिस्टर्ड व्यापारियों को Input Tax Credit मिलती है।  (Input Tax Credit से तात्पर्य विक्रय के समय ग्राहकों से ली गई टैक्स की अमाउंट में से क्रय के समय दी गई टैक्स की अमाउंट घटाने के बाद बची हुई राशि ही सरकार को भुगतान करना होती है।)

वहीं रेगुलर स्कीम में रजिस्ट्रेशन का disadvantage इसे कहा जा सकता है कि रेगुलर स्कीम वाले व्यापारियों को सालाना रिटर्न्स (Annual Returns) के अलावा भी हर माह अपने GST Returns सबमिट करना होते हैं, जो छोटे व्यापारियों के लिये आसान नहीं होता।

अब बात करते हैं Composition Scheme की

Composition Scheme :

जिन व्यापार या व्यवसाय का टर्नओवर 1.5 करोड़ रूपये से कम होता है सिर्फ वे ही अपना रजिस्ट्रेशन कंपोजिशन स्कीम में करा सकते हैं।  अगर व्यापार या व्यवसाय का रजिस्ट्रेशन GST के अन्तर्गत Special Category वाले राज्यों में से किसी में कराया जा रहा है तो 75 लाख रूपये से कम टर्नओवर वाले व्यापार या व्यवसाय ही अपना रजिस्ट्रेशन कंपोजिशन स्कीम में करा सकते हैं।

यहाँ आपको यह भी जानकारी होना चाहिये कि आइसक्रीम, पान मसाला व तंबाखू उत्पादक कंपोजिशन स्कीम में अपना रजिस्ट्रेशन नहीं करा सकते हैं।

इसके अलावा Casual Taxable Person या ऐसे व्यापार जो माल की सप्लाई ई-काॅमर्स ऑपरेटर (E-Commerce Operator) के तौर पर करते हैं उनका रजिस्ट्रेशन भी कंपोजिशन स्कीम में नहीं कराया जा सकता है।

कंपोजिशन स्कीम में कुल विक्रय या Total Sales का 1% सरकार को टैक्स के रूप में जमा कराना होता है और अगर हम सर्विस प्रोवाइडर हैं, या हमारे द्वारा सर्विसेज़ की सप्लाई की जा रही है तो 6% सरकार को टैक्स के रूप में जमा कराना होता है।

आपको यह भी पता होना चाहिये कि अल्कोहल जैसे गुड्स जो GST के अन्तर्गत टेक्सेबल नहीं हैं उनका विक्रय कंपोजिशन स्कीम में नहीं किया जा सकता है।

कंपोजिशन स्कीम में ध्यान रखने वाली बातें –

कंपोजिशन स्कीम में Tax Invoice के स्थान पर बिल ऑफ सप्लाई जारी किया जाता है जिसमें “Composition Taxable Person Not Eligible to collect tax on Supplies” सबसे ऊपर स्पष्ट रूप से दर्शाया जाना चाहिये।

साथ ही व्यापार के साइनबोर्ड और सभी Notice Boards पर विशेष रूप से Composition Taxable Person भी दर्शाया जाना चाहिये।

कंपोजिशन स्कीम में रजिस्ट्रेशन का यह फायदा है कि कंपोजिशन स्कीम वाले व्यापारियों को हर माह अपने Tax Returns सबमिट करने की आवश्यकता नहीं होती है, उन्हें सिर्फ CMP-08, GSTR-4 (Annual), GSTR-9 फाईल करना होते हैं।

कंपोजिशन स्कीम में रजिस्ट्रेशन के कुछ disadvantages भी हैं जैसे

  • Composition Scheme (कंपोजिशन स्कीम) में रजिस्टर्ड व्यापारी जिस राज्य में उसका रजिस्ट्रेशन हुआ है उसके अलावा अन्य राज्यों में अपने माल व सेवाओं की सप्लाई नहीं कर सकता है।
  • कंपोजिशन स्कीम में Input Tax Credit को क्लैम नहीं किया जा सकता है।

Nil Rated, Exempted, Zero Rated and Non-GST supplies :

दोस्तों ये वे terms हैं जो देखने या बोलने में लगभग एक जैसे ही लगते हैं किन्तु GST कानून के अनुसार ये सभी terms अलग-अलग हैं और यदि आप एक अकाउंटेंट हैं या टैली व अकाउंट के स्टुडेंट हैं तो आपको इनमें अंतर पता होना ही चाहिये।

Nil Rated Supplies :

ऐसी सप्लाइज़ जिनमें टेक्स की दर 0% घोषित की गई है Nil Rated Supplies कहलाती हैं।  अनाज, नमक आदि की सप्लाई इस प्रकार की सप्लाई में आती है।

यहाँ यह ध्यान रखना चाहिये कि इन्हें Exepmted Supplies कहना उचित नहीं होगा क्योंकि इन पर टेक्स की दर घोषित की गई है।  यह बात अलग है कि यह दर 0% है।

Exempted Supplies :

Exempted Supplies में बुनियादी आवश्यकता की वस्तुओं की सप्लाई आती हैं इसलिये इन पर कोई Tax नहीं लगता है।  इन सप्लाइज़ पर किसी भी प्रकार की ITC (Input Tax Credit) क्लेम नहीं की जा सकती है।  ताजे फल, दूध-दही, ब्रेड आदि इसके कुछ उदाहरण हैं।

Zero Rated supplies :

विदेशों में और Special Economic Zones या Special Economic Zones Developers को की गई सप्लाइज Zero Rated Supplies के अन्तर्गत आती है।  इन सप्लाइज़ पर ITC क्लेम की जा सकती है।

Non-GST Supplies :

ऐसी सप्लाइज़ जो GST के क्षेत्र या दायरे से बाहर की हैं उन्हें Non-GST Supplies कहा जाता है।  हालाँकि इन सप्लाइज़ पर राज्य या देश के नियमों के अनुसार GST के अलावा अन्य टेक्स लागू हो सकते हैं। पेट्रोल, अल्कोहल आदि इसके कुछ उदाहरण हैं।

Special Economic Zones (SEZ) :

SEZ या Special Economic Zones या विशेष आर्थिक क्षेत्र एक ऐसा भौगोलिक क्षेत्र होता है जहाँ काम करने वाली कंपनियों को इन्कम टेक्स, उत्पाद शुल्क, कस्टम और GST में छूट मिल जाती है।   इन क्षेत्रों को देश की सीमा के अंदर विशेष आर्थिक नियमों को ध्यान में रखते हुए व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विकसित किया जाता है।

Input Tax Credit (ITC) :

गुड्स या सर्विसेज़ की सप्लाई पर कस्टमर्स से लिये गये आउटपुट टेक्स को सरकार को जमा कराते समय आप उस राशि को घटा सकते हैं जो आपने गुड्स या सर्विसेज़ को खरीदते समय टेक्स के रूप में चुकाई थी।  इसे ही ITC या Input Tax Credit कहा जाता है।

इसे अच्छे से समझने के लिये एक उदाहरण देख लेते हैं –

मान लीजिये कि हमने कोई वस्तु 1 लाख रूपये में खरीदी है जिसपर GST की दर 18% है।

तो हमने वस्तु का मूल्य और उस पर लगे GST की राशि जो कि 18000 रू. है दोनों मिलाकर 118000 रू. का भुगतान किया है।  यहाँ पर 18000 रू. इनपुट टेक्स है।

अब मान लेते हैं कि उस वस्तु के मूल्य 1 लाख रूपये पर हमने अपना प्रोफिट 10% जोड़ दिया है।  इस प्रकार उस वस्तु का मूल्य 110000 रू. हो गया है और उसे बेचते समय हमने उस वस्तु पर GST लगाया है जो कि 18% के हिसाब से 19800 रू. है।  यहाँ पर 19800 रू. आउटपुट टेक्स है।

अब हमें सरकार को 19800 रू. टेक्स नहीं चुकाना है।

उस वस्तु की खरीदी के समय दिया गया इनपुट टेक्स जो कि 18000 रू. था उसे आउटपुट टेक्स 19800 रू. में से घटाकर बची हुई राशि ही टेक्स के रूप में जमा कराना है क्योंकि 18000 रू. की राशि तो हमारे द्वारा उस वस्तु की खरीद के समय ही जमा करा दी गई थी।   यही Input Tax Credit है।

Reversal of Input Tax Credit :

यदि गुड्स या सर्विसेज़ के प्राप्तकर्ता (Recipient of Goods or Services) द्वारा सप्लायर को 180 दिन के अंदर उस गुड्स या सर्विसेज़ का मूल्य टेक्स के साथ भुगतान नहीं किया जाता है, तो प्राप्तकर्ता को प्राप्त की गई इनपुट टेक्स क्रेडिट को रिवर्स करना पड़ेगा।  कहने का मतलब यह है कि ली गई Input Tax Credit ब्याज के साथ प्राप्तकर्ता की Output Tax Liability में जोड़ दी जायेगी।

Reverse Charge Mechanism (RCM) :

सामान्यतः टेक्स का कलेक्शन सप्लायर द्वारा प्राप्तकर्ता से किया जाता है और सरकार को भुगतान किया जाता है किन्तु Reverse Charge Mechanism में ऐसा नहीं होता।  Reverse Charge Mechanism (RCM) में उस सप्लाई का प्राप्तकर्ता सप्लायर को टेक्स की राशि का भुगतान नहीं करता है, वह सिर्फ गुड्स या सर्विस की राशि का ही भुगतान करता है।  टेक्स की राशि के पेमेंट का दायित्व उस वस्तु या सर्विस के प्राप्तकर्ता पर होता है और टेक्स का पेमेंट उसके द्वारा सीधे ही सरकार को कर दिया जाता है।

ऐसा कुछ विशेष दशाओं में ही हो सकता है – जैसे यदि किसी अनरजिस्टर्ड सप्लायर से पर्चेज़ की जा रही है जिसे कि GST लगाने का अधिकार ही नहीं है तो ऐसी स्थिति में इसकी Tax Liability उस वस्तु या सेवा के प्राप्तकर्ता पर आ जाती है।  इसके अलावा गुड्स या सर्विसेज़ के इम्पोर्ट पर या नोटिफाइड गुड्स व सर्विसेज़ के केस में भी ऐसा हो सकता है।

दोस्तों यहाँ हमने जी एस टी की कुछ जरूरी शब्दावली (Important Terms of GST) का बेसिक परिचय जान लिया है।
इनके अलावा भी अगर जीएसटी से संबंधित कोई ऐसे terms या शब्द हों जिनके बारे में आप जानना चाहते हैं या कोई सुझाव हों तो कमेंट्स में अवश्य लिखें ताकि Important Terms of GST को विस्तार दिया जा सके।

अन्य महत्वपूर्ण टाॅपिक्स (Other Important Topics)

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2 thoughts on “जीएसटी की महत्वपूर्ण शब्दावली (Important Terms of GST in Hindi)

  • June 3, 2021 at 5:27 am
    Permalink

    Please add some more terms related to GST.

    Reply
    • June 7, 2021 at 3:08 pm
      Permalink

      Thanks for the valuable comment. I’m going to upload some more terms very soon.

      Reply

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